
भारत में बहुत सी बातें अजीब नहीं, जीनियस होती हैं। जैसे – “बाथरूम जाना” आम बात है, लेकिन “बाथरूम करना” सिर्फ हमारे मोहल्ले का ट्रेडमार्क है! यहां बाथरूम कोई स्थान नहीं, बल्कि एक फुल-फ्लेज्ड क्रिया है – जिसमें टाइम, पोजिशन और प्रेशर – सबका तालमेल जरूरी है।
“कब से बाथरूम कर रहे हो?” – यहां टाइम नहीं, टॉयलेटिंग हिस्ट्री पूछी जाती है
पड़ोसी पूछता है, “बेटा कहाँ जा रहे हो?” जवाब आता है – “बाथरूम कर के आ रहा हूँ अंकल!” जैसे कोई बड़ा काम करके लौटा हो। कुछ लोग तो गर्व से बताते हैं – “आज तो 20 मिनट बाथरूम किया!”
मालूम नहीं ये क्रिया है या क्रांतिकारी अनुभव।
बाथरूम क्रांति और ग्रामीण नवाचार
गांवों में आज भी लोग कहते हैं – “थोड़ा बाथरूम कर लूं, फिर आते हैं!”
अब शहर वालों को लगेगा कि ये गलत ग्रामर है, लेकिन नहीं भाई, यह देसी शुद्ध व्याकरण है। यहां “करना” मतलब टॉयलेट ही नहीं – नहाना, धोना, कपड़ा धोना और सोचने का समय भी यहीं होता है।
बाथरूम में बैठकर बजट, भविष्य और ब्रेकअप तक डिसाइड होता है
हमारे यहाँ बाथरूम मोबाइल चार्जिंग स्टेशन, गाना सुनने का स्टूडियो, थिंक टैंक, और कभी-कभी तो फैमिली मीटिंग रूम भी होता है। कोई सुकून नहीं देता जितना “बाथरूम करने” का टाइम देता है। यहाँ लोग इतना टाइम बिताते हैं कि Netflix सीरीज़ भी वहीं खत्म कर लें।
क्या आप भी ‘बाथरूम करते हैं’? तो आप भारतीय हैं – और गर्व से कहिए
अगर आप भी दिन की शुरुआत बाथरूम जाने से नहीं, बाथरूम करने से करते हैं, तो आप अकेले नहीं। यह सिर्फ भाषा नहीं, भावनाओं की बात है।
क्योंकि भारत में ‘संधि-विच्छेद’ से ज़्यादा ‘बाथरूम विच्छेद’ समझ आता है!